
बिहार में 2025 विधानसभा चुनाव से पहले लोकतंत्र की एक ऐसी ‘धुलाई’ शुरू हो चुकी है, जिसमें केवल साफ-सुथरे वोटर ही बचे रहेंगे। चुनाव आयोग ने SIR यानी Special Intensive Revision का झाड़ू लेकर निकाला है, ताकि वोटर लिस्ट से फर्जी नामों को हटाया जा सके — लेकिन विपक्ष को लग रहा है कि साथ में असली भी बह जाएँगे!
नाम जुड़वाने के लिए सिर्फ एक महीना!
चुनाव आयोग ने बड़ा एलान करते हुए कहा है कि 1 अगस्त से 1 सितंबर 2025 तक कोई भी पात्र नागरिक अपना नाम वोटर लिस्ट में जुड़वा सकता है।
अगर आपका नाम BLO या BLA की नजरों से ओझल हो गया है, तो घबराइए मत — आपको एक और चांस दिया गया है।
राजनीतिक दलों को भी छूट दी गई है कि वो अपने ‘लुभावने वोटरों’ का नाम जुड़वाने या फिर गलती सुधारने में आयोग की मदद करें।
विवाद क्यों है? क्या है विपक्ष का आरोप?
विपक्षी दलों का आरोप है कि ये रिवीजन एक लोकतांत्रिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि “छँटाई अभियान” है। तेजस्वी यादव ने आरोप लगाया है कि ये वोटर लिस्ट से गरीब, दलित, पिछड़े और मुस्लिम मतदाताओं को हटाने की सोची-समझी रणनीति है।
उन्होंने कहा, “लिस्ट से नाम नहीं काटे जा रहे, बल्कि हक छीना जा रहा है। ये NRC का ट्रायल रन है।”
इतना ही नहीं, तेजस्वी ने बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के बॉयकॉट तक की धमकी दे डाली।
फेक्ट vs पॉलिटिक्स: कौन सही, कौन ग़लत?
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चुनाव आयोग कहता है: “हम फर्जी नाम हटा रहे हैं, जिससे चुनाव पारदर्शी हो।”

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विपक्ष कहता है: “आप पारदर्शिता के नाम पर वोटर्स का ट्रांसपैरेंट एक्सपोर्ट कर रहे हैं।”
बिहार में करीब 7.89 करोड़ मतदाता हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, करीब 35.6 लाख नाम हट सकते हैं। अब इस सफाई में लोकतंत्र की चमक बढ़ेगी या धुँधलका होगा, ये तो 2025 बताएगा।
क्या बिहार में लोकतंत्र की ‘डिटॉल बौछार’ चल रही है?
जैसे IPL से पहले खिलाड़ियों की टीम बदली जाती है, वैसे ही बिहार में वोटर स्क्वाड पर काम चल रहा है।
सवाल ये है: “क्या ये टीम अपग्रेड है या आउटऑफॉर्म वोटर्स की छुट्टी?”
बिहार की सड़क पर लोकतंत्र लोट-पोट! पोस्टर छिना, पद छिना नहीं!
